Q. 1. वाष्पोत्सर्जन के दौरान स्टोमाटा (रंध्र) के खुलने एवं बंद होने की क्रिया विधि को समझाएं!
Ans - स्टोमाटा का बंद होना और खुलना रक्षक कोशिकाओं (Guard Cells) के स्फीटी (टरगर) में बदलाव से होता है। प्रत्येक रक्षक कोशिका के आंतरिक भित्ति रंध्र को घेरे दो रक्षक कोशिकाओं में जब स्फीति दाब बढ़ता है तब पतली बाहरी भित्तियाँ बहार की ओर उभरती है और वह खुल जाती है ऐसा पानी की मात्रा अधिक होने पर होता है पुन: जब पनि की कमी होती है, तो रक्षक कोशिकाओं की स्फीती दाब समाप्त हो जाती है अर्थात् जल तनाव खत्म हो जाती है। जिसे तन्य आंतरिक भित्तियाँ अपनी मूल (पहले जैसी)स्थिति में आ जाती है और रंध्र छिद्र बंद हो जाता है। इस प्रकार से हम देखते है कि पौधों में जल की मात्रा अधिक होने पर रंध्र खुल जाता है तथा वाष्पोत्सर्जन की क्रिया के पश्चात् जल की मात्रा घटने पर रंध्र बंद हो जाता है।
Q. 2. वाष्पोत्सर्जन की परिभाषा दे! वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण दे!
Ans - वाष्पोत्सर्जन: पादपों से वायुमंडल में जल का वाष्प के रूप में बाहर निकलने की क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते है।
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक: वाष्पोत्सर्जन की क्रिया वातावरणीय कारकों जैसे - आद्धता, तापक्रम, वायु की गति और पादप कारकों जैसे जड़ों द्वारा जल ग्रहण की क्षमता, पत्तियों का क्षेत्रफल एवं पत्तियों की संरचना द्वारा प्रभावित होती है।
वातावरणीय कारक वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित जैसे उच्च आपेक्षित आद्रता वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करता है परंतु तापक्रम 10℃ को वाष्पीकरण के दर दुगुनी कर देती है उसी प्रकार उच्च तापक्रम में रंध्र बंद हो जाता है, जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर घट जाती है। वायुगति भी वाष्पोत्सर्जन की गति को बढ़ा देती है। पादप कारकों में पत्तियों का क्षेत्रफल अधिक होने पर वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है।
Q. 3. रंध्रों की गति को प्रभावित करने वाले वातावरणीय कारकों को लिखें?
- प्रकाश
- तापक्रम
- जल की उपलब्धता
- CO2 की सांद्रता
- यह पौधों द्वारा जल के अवशोषण में मदद करता है।
- एक कोशिका से जल की गति में मदद करता है।
- स्टोमाटा के खुलने तथा बंद होने में मदद करता है।
- यह पौधों के अंगों को दृढ़ता प्रदान करता है।
Q. 4. पौधों में परासरण के महत्त्व को लिखें!
परासरण का महत्त्व निम्नलिखित है:
Q. 5. विसरण तथा परासरण में अंतर लिखें!
| विसरण | परासरण |
|---|---|
| विसरण द्वारा गति निष्क्रिय होती है। इसमें ऊर्जा का व्यय नहीं होता है विसरण के अणु अनियमित रूप से गति करते है परिणाम स्वरूप पदार्थ उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता वाले क्षेत्र में जाते है। यह एक धीमी प्रक्रिया है। | परासरण विशेष रूप से पारगम्य झिल्ली के आर- पार जल के विसरण के लिए सन्दरभित किया जाता है। परासरण स्वत: ही प्रेरित बल की अनुक्रिया से पैदा होता है। |
Q. 6. वाष्पोत्सर्जन एवं वाष्पीकरण में अंतर लिखे!
| वाष्पोत्सर्जन | वाष्पीकरण |
|---|---|
| यह कायकी से संबंधित क्रिया है, जो पौधे में होती है। | यह एक भौतिक प्रक्रिया है जो किसी भी मुक्त सतह पर हो सकता है। |
| यह पत्तियों की सतह को शीतलता प्रदान करता है। | वाष्पीकरण के कारण मुक्त सतह सुस्क हो जाती है। |
| विभिन्न बल जैसे विसरण दाब परासरण दाब आदि काम करते है। | इस प्रकार का कोई भी बल काम नहीं करता है। |
Q. 7. विसरण तथा अंत: शोषण में अंतर लिखें!
| विसरण (Diffusion) | अंत: शोषण (Inabibition) |
|---|---|
| यह क्रिया अणुओं के उच्च सांद्रता वाले क्षेत्र से निम्न सांद्रता वाले क्षेत्र में अनियंत्रित गति के फलस्वरूप सम्पन्न होती है। | जब अणु के अवशोषण हेतु एक अधिशोषण (Adsorbant) की आवश्यकता होती जैसे सुस्क पादप पदार्थ |
Q. 8. रसारोहन (Mutation) की क्रिया में मूल दाब का क्या महत्त्व है?
Ans-रसारोहन की क्रिया द्वारा ही जड़ में पानी के अवशोषण के कारण जो दबाव पैदा होता है, वह वाहिनियाँ में भी दबाव डालता है। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि इसी मूल दाब के कारण रसारोहन होता है। हालांकि रसारोहण की क्रिया द्वारा पौधों में 67 फीट तक पानी को उठाने में समर्थ हो सकता है, परंतु लंबे पेड़ों के लिए जिनका लम्बाई 400 फीट या उससे अधिक हो सकती है, यह दबाव पर्याप्त नहीं है इसलिए इस सिद्धान्त को कोई महत्त्व नहीं रह जाता है।
संसजन सिद्धान्त (Cohesion theory) क्या है?
Ans - संसजन सिद्धान्त 1895 ई॰ में डिक्सन एवं जांली ने दिया था। उनके अनुसार भूमि से जब जाइलम द्वारा जड़ तथा तना से होते हुए पत्तियों तक पहुंचता है जो स्टोमाटा से वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा पौधे से वायुमंडल में चला जाता है।
परासरण दाब बढ़ने से संलग्न कोशिकाओं से पानी सोखती है। इस प्रकार प्रत्येक कोशिका से जल जाते रहने के कारण तनाव बढ़ता जाता है और वहाँ से पानी का लगातार सुखना प्रारंभ हो जाता है और इस प्रकार मूल रोम से लगातार पत्तियों तक जल बिना किसी रुकावट के विसरण द्वारा जाता रहता है।

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